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खाद: प्रकृति का उपहार, हमारी जिम्मेदारी

खाद का अर्थ होता है, खाद्य पदार्थ (पौधों का भोजन), पौधों को पानी के साथ साथ भोजन की भी आवश्यकता होती है। पौधे अधिकतर भोजन प्रकाश संश्लेषण से प्राप्त करते हैं, लेकिन पोषकतत्व (माइक्रो न्यूट्रेंट) जड़ों के माध्यम से पानी के साथ जमीन से ग्रहण करते हैं। भूमि में जो जैविक कार्बन तत्व होता है वह भूमि में जीवन का आधार होता है। यह भूमि में रहने वाले सभी जीव, जीवाणुओं का भोजन होता है। इससे ही भूमि उपजाऊ बनती है और पौधे पनपते है।

ESSENTIAL INGREDIENTS IN COMPOST

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रासायनिक खादों की वजह से मिट्टी में यह जैविक कार्बन तत्व कम होता जा रहा है और भूमि बंजर होती जा रही है। रसायनिक खाद रूपी नशा देकर धरती माता का दोहन, बलात्कार किया जा रहा है। एक इंच मिट्टी की परत बनने में हजारों वर्ष लग जाते हैं। दिनों दिन मिट्टी कम होती जा रही है। कुछ मिट्टी को हमने बिल्डिंग, शेड, सड़कों, फुटपाथ के नीचे दबा दिया है, कुछ से हम खनिज लवण, बिल्डिंग मैटेरियल, रेत, कोयला, निकालकर खत्म कर रहे हैं, कुछ से ईंट, मिट्टी के बर्तन बनाकर उसे हमेशा हमेशा के लिए मार दिया हैं। कुछ को रसायनिक केमिकल डालकर, जहरीला करके मार रहे हैं। कुछ को मलबे, प्लास्टिक के नीचे दबाकर, दम घोंटकर मार रहे हैं। कुछ आग लगने से बंजर हो रही है।
भले ही हम धरती को माता कहें लेकिन हम इसकी देखभाल माता की तरह बिलकुल भी नही कर रहे हैं। दिल्ली जैसे शहरों में गमलों में पौधे लगाने के लिए ऑनलाइन से मिट्टी 55 रुपए प्रति किलो तक मिलती है। हम मिट्टी को पैदा नहीं कर सकते हैं, लेकिन खाद बनाना ही एक मात्र ऐसी विधि है जिससे हम उपजाऊ मिट्टी उत्पन्न कर सकते हैं। इसे पोंटिंग सॉइल कहते हैं जो विदेशों में बहुत महंगी मिलती है जिसे लोग गमलों में डालकर पौधे लगाते हैं। इसका (खाद का) एक फायदा और है कि हम जैविक कचरे का सदुपयोग करते है जिससे कचरें के ढेर नही बनते है और वातावरण, भूमि, भूजल को प्रदूषित करने से रोका जाता है, जमीन का दुरुपयोग लैंडफिल के रूप में होने से बचाव होता है और बाहर से खाद खरीदनी नहीं पड़ती है और रसायनिक खाद का उपयोग कम होता है।

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पत्तों को जलाना या कचरे के रूप में विद्यालय परिसर से बाहर भेजना एक पर्यावरणीय और नैतिक अपराध, पाप होता है, जिससे बचना चाहिए। पत्तों को जलाने से वायु का प्रदूषण बढ़ता है जिससे फेफड़ों की बीमारियां होती है। कचरा सड़क किनारे डालने से बदबू, मक्खी, मच्छर, कॉकरोच, चूहे, बीमारी पैदा करने वाले कीटाणु पैदा होते हैं। लैंडफिल में फेंकने से उपयोगी जमीन खराब होती है, बहुत धन खर्च होता है, हानिकारक गैसें उत्पन होती है।
अगर हम विधालय से ब्लैक गोल्ड रूपी इस धन को कचरे के रूप में बाहर भेजते हैं या जलाते हैं तो फिर हमारी पर्यावरण संरक्षण की बातें खोखली ही कही जायेंगी। पत्तों की खाद को मिट्टी या ग्रोइंग मीडिया की तरह प्रयोग में लाया जा सकता है। यह बहुत हल्की होती है इससे छत, बालकनी में लगे गमलों में भार कम होता है और इसकी वाटर रिटेनिंग कैपेसिटी (जल धारण क्षमता) अधिक होती है इससे पानी की आवश्यकता कम होती है। इसमें पनपे पौधों को अलग से खाद देने की खास आवश्यकता नही होती है और पौधों की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जिससे उनमें बीमारियां नही लगती है। इसमें मिट्टी वाले रोग नहीं लगते है।

खाद कई प्रकार की होती है जैसे कि पत्तो की खाद, केंचुआ खाद, रूड़ी की खाद, किचन वेस्ट से बनी खाद, रसायनिक खाद इत्यादि। सभी खाद बनाने का तरीका अलग अलग होता है। खाद बनना एक बायोलॉजिकल प्रक्रिया होती है, विज्ञान होती है इसलिए इसके सिद्धांतो को, विज्ञान को समझना बहुत जरूरी होता है। पत्तो की खाद को अंग्रेजी में लीफ मोल्ड भी कहते हैं क्योंकि यह मोल्ड यानि फंगस, फंफूदी बनाती हे। जबकि किचन वेस्ट खाद जीवाणुओं से बनती हे। और केंचुआ खाद केंचुओ से बनती है।

पत्तो की खाद (Leafmold)

पत्तों की खाद बनाने के लिए चार तत्वों की आवश्यकता होती है। १ जैविक कार्बन (पत्ते, फसल अवशेष), २. नमी, ३. ऑक्सीजन, ४. फंगस।
विद्यालयों में इसे जमीन में 3,4 फीट गहरा, 3,4 फीट चौड़ा और 5,6 फीट लंबा गढ़ा या नाली खोदकर बनाया जा सकता है। अगर विधालय में जमीन नहीं हो तो ईंटो, लकड़ी, जाली, कपड़े की 4 फीट ऊंची बाड़/दीवार बनाकर या ढेर बनाकर भी बनाया जा सकता है। रोजाना जो भी पेड़ों के पत्ते नीचे गिरे उन्हे गड्ढे या ढेर में डाल देना चाहिए। लेकिन इसमें नॉन जैविक पदार्थ जैसे कि प्लास्टिक, कांच, ईंट पत्थर, मलबा, तेल इत्यादि नहीं डालना चाहिए। जब लॉन की घास कटे तो उसे भी इस गढ़े या ढेर में बिछा देना चाहिए। पौधों की कटाई, छंगायी से प्राप्त पत्ते, छोटी टहनी, खरपतवार, मरे, सूखे हुए पौधे, जड़ें भी डाले जा सकते है, बचा हुआ खाना, फल, सब्जियां, ज्यूस, छाछ, आचार इत्यादि भी इसमें डाले जा सकते है। ऊपर से पत्तों से ढक देना चाहिए ताकि मक्खी मच्छर उत्त्पन ना हो। टहनियों को छोटे टुकड़ों में काटकर (श्रेड करके) डालने से जल्दी खाद बनती है।
सप्ताह में एक दो बार इसमें पानी छिड़ककर गीला कर देना चाहिए। गड्ढे या ढेर की लंबाई जगह अनुसार हो सकती है लेकिन चौड़ाई और गहराई/ऊंचाई कम से कम तीन फीट होनी चाहिए। जब एक गड्ढा भर जाए तो दूसरे में शुरू कर देना चाहिए। जब तक दूसरा गड्ढा भरेगा तब तक पहले गढ़े की खाद तैयार हो जायेगी। जब यह खाद पूरी तरह तैयार हो जाती है तो इसमें सोंधी मिट्टी की खुशबू आती है। और यह भूरे, काले, ग्रे रंग की हो जाती हे, साइज छोटा हो जाता है। इसे छानकर या बिना छाने भी प्रयोग में लाया जा सकता है।
इसे पूरी तरह बनने में 6 महीने लगते है लेकिन उपयोग में लाने के लिए 3 महीने में तैयार हो जाती हे। गांवों, खेतों में पत्तों के साथ साथ फसल अवशेष भी इसमें डाला जा सकता है।
घरों में जमीन नहीं होने पर पत्तों की खाद छेद हुए 200 लीटर वाले ड्रम या बोरों में भी बनाई जा सकती है।

किचन वेस्ट से खाद (compost)

घरों में किचन वेस्ट से भी अच्छी खाद बनाई जा सकती है। इसके लिए पांच तत्वों की आवश्यकता होती है।
१. कार्बन युक्त पदार्थ (सूखे पत्ते, फसल अवशेष, कोकोपीट, गत्ते, लकड़ी का बुरादा, इत्यादि),
२. नाइट्रोजन युक्त पदार्थ (हरे पत्ते, हरी घास, किचेन वेस्ट, फूड वेस्ट, चाय पत्ती, कॉफी पाउडर, गाय का गोबर,मूत्र इत्यादि),
३. नमी (55%)। गीला: सुखा कचरा 1:1 से लेकर 1:2 अनुपात में डालने से नमी की पूर्ति हो जाती हैं वरना पानी ऊपर से छिड़कना पड़ता है।
४. ऑक्सीजन - खाद बनाने वाले जीवाणुओं के लिए ऑक्सीजन/हवा की आवश्यकता होती है। जमीन में गड्ढे में खाद बनाने से मिट्टी के छिद्रों में उपस्थित हवा स्वत ही प्राप्त हो जाती है। ड्रम या बाल्टी में खाद बनाने के लिए छेद करने पड़ते है। ये छेद 3 एमएम डायामीटर के 6 इंच परस्पर दूरी पर किए जाते हैं।
५. जीवाणु : जीवाणु ही जैविक कचरे को खाद में परिवर्तित करते हैं। वैसे तो भोजन की तलाश में जीवाणु वातावरण से अपने आप ही आ जाते हैं लेकिन वातावरण में तो अनेकों तरह के अच्छे बुरे जीवाणु हो सकते हैं जैसे कि बीमारी या बदबू पैदा करने वाले भी। इसलिए अच्छे जीवाणुओं को कल्चर या जामन के रूप में मिलाने से खाद अच्छी और जल्दी बनती है। क्योंकि अच्छे जीवाणु अपनी कालोनी में बुरे कीटाणुओं को घुसने नहीं देते हैं।

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विधि १ :

  • अगर घर में जमीन उपलब्ध हो तो एक कोने/किनारे में 2 से 3 फीट गहरा और 2 फीट चौड़ा, 4,5 फीट लंबा गड्ढा/नाली खोदकर उसमें सबसे पहले कार्बन युक्त कचरे (सूखे पत्तों, फसल अवशेष इत्यादि) की 6 इंच मोटी परत नीचे बिछा दी जाती है।
  • उसके ऊपर 3 इंच मोटी परत नाइट्रोजन युक्त कचरे (गीले पत्ते, हरी घास, किचेन वेस्ट, गोबर इत्यादि की बिछा दी जाती है।
  • उसके ऊपर पहले की बनी हुई खाद छिड़क दी जाती है। पुरानी खाद नहीं हो तो किसी बड़े, पुराने पेड़ के नीचे की मिट्टी या वेस्ट डाइकंपोजर या गाय का गोबर या छाछ इत्यादि छिड़के जा सकते हैं।
  • उसके ऊपर कार्बन युक्त कचरे की परत डालकर, पानी छिड़क दिया जाता है। ऐसे परत दर परत गीला सुखा जैविक कचरा डाला जाता है जब तक गड्ढा भर नहीं जाता है।
  • ऊपर से पानी छिड़ककर मिट्टी की पतली परत से ढक दिया जाता है। उसके बाद दूसरे गड्ढे या नाली में परत दर परत गीला सुखा कचरा डाला जाता है। कचरा जितना छोटे साइज का होगा खाद उतनी ही जल्दी बनेगी।

विधि २ :

  • अगर घर में जमीन नहीं हो तो फर्श के उपर प्लास्टिक के 200 लीटर के साइड में छेद वाले ड्रम में भीं बनाई जा सकती है।
  • इसमें नीचे टूंटी लग जाए तो बहुत बढ़िया है जिसके माध्यम से तरल खाद/पानी को बाहर निकाला जा सकता है ताकि बदबू नहीं आए।
  • इस तरल खाद को 10 गुना पानी मिलाकर पौधों में डाला जाता है।
  • इस ड्रम में नीचे 1 फीट मोटा सुखा जैविक कचरा डाला जाता है।
  • उसके बाद गीले कचरे (2 इंच मोटा) और सूखे कचरे (4 इंच मोटा) को परत दर परत जमा किया जाता है। जब तक ड्रम भर नही जाए। ऊपर से ड्रम को ढकना चाहिए ताकि बारिश का पानी, मक्खी मच्छर इत्यादि इसमें ना घुसे।
  • एक ड्रम भरने के बाद दूसरे ड्रम में खाद बनाना शुरू किया जाता है। जब दूसरा ड्रम भरता है तब तक पहले वाले ड्रम की खाद तैयार हो जाती है।
  • सप्ताह में एक बार अगर ड्रम को पलटकर या हिलाकर गीला सुखा मिला दिया जाए तो खाद और जल्दी बनती है। खाद बनने में लगभग दो महीने का समय मिलता है, उसके बाद इसे प्रयोग में लाया जा सकता है।
  • यह खाद काफी तेज होती है इसलिए इसे मिट्टी, पत्तों या लीफमोल्ड में 20% से ज्यादा नही मिलाना चाहिए। इसे मिट्टी में मिलाकर छोटे पौधे लगाने से पहले एक महीने के लिए ठंडा किया जाए तो इसकी गर्मी निकल जाती है। पहले से लगे हुए पौधों में ऊपर की मिट्टी खुरचकर इस खाद की एक इंच मोटी परत डालकर, मिट्टी में मिलाकर ऊपर से पानी दे दिया जाता है। दो महीनो में एक बार खाद डालना पर्याप्त होता है।
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विधि ३:
घर में ड्रम नहीं होने पर इसे बड़े खाली गमले या बड़े मुंह वाले मिट्टी के घड़े या जूट बैग में भी बनाया जा सकता है।

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विधि ४:
अगर बड़े गमले में पहले से ही मिट्टी भरी हो तो उसकी आधी मिट्टी निकालकर उसमें किचन वेस्ट और मिट्टी के परत डालकर भी खाद बनाई जा सकती है।

विधि ५ :
पेड़ों, बड़े पौधों के चारों और कैनोपी के क्षैत्र में मिट्टी खोदकर, 1 फुट चौड़ी और 1 फीट गहरी नाली बनाकर, किचन वेस्ट को सीधा ही डालकर, मिट्टी से ढककर भी खाद बनाई जा सकती है, जो पौधे की जड़ों को मिलती रहेगी।

अच्छी खाद बनने की निशानी यही है कि उसमें सोंधी मिट्टी की खुशबू आनी शुरू हो जाती है। अगर खाद में बदबू आ रही हो तो इसका मतलब गीले कचरे की मात्रा ज्यादा है, हवा नही लग रही है या नीचे लिक्विड/ पानी इक्ट्ठा हो गया है। उसमें पानी निकालकर और सुखा कचरा मिलाकर फिर से बनाया जा सकता है।

नोट : किचन वेस्ट में सब्जियों, फलों के छिलके, सब्जियों के पत्ते, डंठल, चाय की पत्ती, काफी पाउडर, रोटी, चावल, सुखी सब्जी, आचार, सड़े हुए फल, सब्जियां, नाखून, बाल इत्यादि डाले जा सकते हैं। इसमें मिठाई, दूध, डेरी प्रोडक्ट, तेल, तरी, तरल पदार्थ, नॉन वेज आइटम इत्यादि नहीं डालने चाहिए।

गांवों खेतों में गाय- भैंस के गोबर और फसल अवशेष से खाद

गांवों में लोग गाय ,भैंस, बकरी, ऊंठ ,घोड़ा इत्यादि के गोबर से तो खाद बनाते हैं लेकिन पत्तों, फसल अवशेष, लकड़ी, खरपतवार, खराब हुए भूसे को जला देते हैं। गाय भैंस के गोबर से जो रुड़ी की खाद बनाते है उसमें भी सिर्फ गोबर ही डालते हैं जिसमें नाइट्रोजन की अधिकता होती है, और उसमें ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है इसलिए खाद बनने में लंबा समय लगता है, खाद कम बनती है और वह खाद पौधों को जला भी सकती है। अगर खाद बनने के सिद्धांतो (पांच तत्वों : कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, नमी, जीवाणु) के अनुसार खाद बनाई जाए तो खाद जल्दी, अच्छी क्वालिटी की और ज्यादा मात्रा में बनती है और इससे मिट्टी में भी सुधार होता है।

विधि :

  • जमीन में 4 फीट गहरा, 4 फीट चौड़ा और लम्बाई जगहानुसार लेकिन कम से कम 4 फीट लंबा गड्ढा खोदें।
  • अब उसमें नीचे कार्बन युक्त पदार्थ के रूप में सूखे पत्तों, फसल अवशेष , पेड़ों की पतली टहनियां, बिना कांटों वाली झाड़ियां इत्यादि की 6 इंच मोटी परत बिछाकर, ऊपर नाइट्रोजन युक्त पदार्थ के रूप में 2 इंच मोटी गोबर की परत बिछाकर पानी छिड़क देवें।
  • गोबर नहीं हो तो पानी की जगह गाय के मूत्र का छिड़काव किया जा सकता है, वेस्ट डिकंपोजर या जीवामृत को छिड़का जा सकता है, या फिर 3 इंच मोटी हरे पत्तों, घास, खरपतवार, हरे फसल अवशेष (कपास, नरमा , सरसों इत्यादि), बिना कांटो वाली झाड़ियों,पेड़ों की पतली हरी टहनियों इत्यादि को छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर (श्रेड करके) उनकी परत डाली जा सकती है; या फिर खराब, गिरे हुए, सड़े हुए फल- सब्जियां, फल-सब्जी अवशेष, फूड वेस्ट, इत्यादि भी डाले जा सकते हैं।
  • ऊपर से पानी का छिड़काव कर दिया जाए। ऐसा करते करते कार्बन युक्त जैविक कचरे और नाइट्रोजन युक्त जैविक कचरे को 2:1 के अनुपात में परत दर परत डालते जाएं जब तक गड्ढा भर नहीं जाए। जमीन से 1,2 फीट ऊपर तक यह ढेर बनाया जा सकता है।
  • अगर गड्ढा गहरा नहीं हो तो ढेर को जमीन से ऊपर भी बनाया जा सकता है जब तक कुल ऊंचाई 5,6 फीट तक ना पहुंच जाए। इससे अधिक ऊंचा ढेर नहीं लगाना है। अगर संभव हो तो 2 महीने बाद इस ढेर को काटकर सूखे गीले कचरे को मिलाया जाना चाहिए ताकि नीचे का कचरा ऊपर और ऊपर का नीचे चला जाए और हर जगह ऑक्सीजन पहुंच जाए। ऐसा जेसीबी, या अन्य मशीन से भी किया जा सकता है।
  • इस तरीके से 6 महीने में खाद बनाई जा सकती है।

कृपया आप खाद बनाना अवश्य शुरू करें। कोई भी दिक्कत या जानकारी , मार्गदर्शन के लिए मुझसे कभी भी संपर्क कर सकते हैं। मैं 25 से अधिक लोगों के लिए ऑनलाइन मीटिंग/वर्कशॉप भी करने के लिए तैयार हूं।

खाद बनाएं, जैविक कचरा निपटाएं
खाद बनाएं, धरती माता को बचाएं
खाद बनाएं, पर्यावरण बचाएं
खाद बनाएं, धन बचाएं
खाद बनाएं, जैविक भोजन उपजाएं
खाद बनाएं, सुंदर बगीचा लगाएं
खाद बनाएं, पानी बचाएं

आर के बिश्नोई,
कचरा प्रबंधन प्रमुख दिल्ली प्रांत, पर्यावरण संरक्षण गतिविधि
प्रांत पर्यावरण प्रमुख, विद्याभारती दिल्ली
9899303026
bishnoirk@gmail.com

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Science and Technology

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Revolutionising Himalayan Agriculture: The Magic of Nepalese-Alder Forests

Imagine a world where forests aren't just pretty backdrops, but vital life-giving forces. A recent study from Jawaharlal Nehru University has revealed a fascinating secret: the type of forest can significantly impact the health of nearby farmland. Researchers found that broadleaf forests, with their wider leaves, are more beneficial to soil health than coniferous forests. These forests promote the growth of beneficial microbes, increase organic matter content, and release essential nutrients, leading to healthier and more productive farms.

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An Agricultural Farm Near Forest

The research, led by Shankar and Garkoti (2024), published in journal Science of The Total Environment, highlights the pivotal role of Nepalese-alder (Alnus nepalensis) forests in enhancing soil quality and nutrient availability. This remarkable improvement is largely attributed to the alder’s nitrogen-fixing capabilities and higher microbial biomass, which contribute to better soil structure, increased organic matter, and enhanced microbial activity. These findings underscore the critical role of forest vegetation in maintaining soil health and productivity in agroecosystems, highlighting the need for strategic forest management practices.

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Ecologist Anand Shankar, Ph.D Scholar with School of Environmental Sciences in Jawaharlal Nehru University taking samples from the Research Forest

The findings indicate that integrating alder forests into agricultural practices could be a sustainable strategy to maintain long-term soil health and productivity in the region.
So, how can we harness this forest power? The answer lies in integrating trees into our agricultural practices. Agroforestry, alley cropping, contour planting, and intercropping are just a few techniques that can bring forests and farms together in a harmonious partnership. Here are some practical steps for farmers:

  1. Agroforestry Systems: Integrate alder trees into existing agricultural fields. Planting rows of alder trees along the borders or within the fields can improve soil fertility through nitrogen fixation.
  2. Alley Cropping: Plant alder trees in rows with crops grown in the alleys between them. This method allows for the benefits of nitrogen fixation and organic matter addition from alder leaf litter while still maintaining crop production.
  3. Contour Planting: On sloped lands, plant alder trees along the contours. This helps in reducing soil erosion and improving water retention, benefiting both the trees and the crops.
  4. Intercropping: Combine alder trees with other crops in the same field. This can enhance biodiversity, improve soil structure, and increase overall productivity.
  5. Soil Enrichment: Use alder leaf litter and prunings as mulch or compost. This organic matter can enrich the soil, improving its structure and nutrient content.
  6. Rotational Planting: Rotate crops with periods of fallow land planted with alder trees. This can help restore soil fertility and break pest and disease cycles.

But the benefits don't stop there. Restoring degraded lands with oak and alder trees can revitalize entire ecosystems. These trees provide habitat for countless species, help prevent soil erosion, and even play a role in combating climate change. Oak forests, known for their rich biodiversity, can help restore native plant and animal species, creating a more balanced and resilient ecosystem. Alder trees, with their ability to improve soil quality, can play a crucial role in stabilising soil, preventing erosion, and enhancing water retention. Additionally, these trees can contribute to carbon sequestration, mitigating climate change by absorbing CO2 from the atmosphere. By incorporating these species into restoration efforts, project initiators can create more sustainable and resilient landscapes.
For policymakers, the message is clear: investing in forest conservation and restoration is not just about protecting nature; it's about ensuring a sustainable future for our communities and our planet. By promoting the conservation and restoration of nitrogen-fixing forests like Nepalese-alder, they can enhance soil fertility, boost agricultural productivity, and support long-term ecological balance in the region. This approach aligns with broader environmental goals, including biodiversity conservation and climate change mitigation. Furthermore, policymakers can develop educational programmes to raise awareness among farmers and local communities about the benefits of sustainable land use practices. Implementing incentive programmes for farmers and landowners who adopt sustainable practices can encourage wider adoption. By promoting nitrogen-fixing forests and supporting sustainable land use practices, we can create a healthier, more prosperous India.

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By leveraging these findings, policymakers can develop and implement strategies that promote sustainable land use practices, enhance agricultural productivity, and support ecological restoration. The focus on planting oak and alder trees in restoration projects can lead to more resilient and sustainable landscapes in the Indian Himalayan Region. This integrated approach aligns with the goals of biodiversity conservation, climate change mitigation, and sustainable development, ultimately contributing to a healthier and more sustainable future for the region. So, let's embrace the power of trees and unlock the hidden potential of our forests. Together, we can create a greener, more sustainable future for generations to come.

Source 👉Shankar, A., & Garkoti, S. C. (2024). Influence of forest types on soil physicochemical and biological characteristics of associated agroecosystems in the central Himalaya. Science of The Total Environment906, 167731.

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Science and Technology

in Environment India

Environment India News Alert

The residents of the village of Phey near Leh in Ladakh are cultivating a crop that is usually not grown in the fragile, water-scarce cold desert region. Using a technique known as mulching, the village in Leh district has emerged as the hub of organic watermelon cultivation.

https://www.downtoearth.org.in/.../this-ladakhi-village

A retired Principal Chief Conservator of Forests, VP Mohan, sought the immediate intervention of Prime Minister in stopping projects being undertaken under the Shimla Smart City Mission. He also sought efforts to tackle the alleged environmental corruption in the town, besides action against anyone found guilty in this practice. Addressing the media, Mohan said the projects being undertaken under the Smart City Mission were not making the town smart, but converting it into a slum.

https://www.uniindia.com/.../for.../States/news/3174015.html

A new report by campaigning organisation Greenpeace International revealed that close to 90% of Indians support reducing plastic production to tackle pollution and combat climate change. This widespread public backing comes ahead of a crucial meeting in Ottawa, Canada, where a global treaty to regulate plastics will be discussed.

https://www.downtoearth.org.in/.../almost-90-indians

Spread over more than 41 acres and with a capacity of 33,000, Maharaja Yadavindra Singh International Cricket Stadium at Mullanpur, Punjab is on the legal turf, with the filing of a petition in public interest for restraining the BCCI and other respondents from conducting cricket matches and tournament there.

https://www.tribuneindia.com/.../pil-in-high-court-to

Assam govt submitted before the Gauhati high court on Wednesday that even though the state cabinet has decided to denotify the Deepor Beel Wildlife Sanctuary, the formal notification has not been issued till date.

https://timesofindia.indiatimes.com/.../art.../109049562.cms

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Education

in Environment India

Family Drama Beneath Our Feet: Genetic Tug of War in Soil

In the ever-evolving saga of nature's mysteries, scientists have uncovered a captivating twist in the age-old tale of plants and their soil companions. A recent research by Clark, K. M. et. al., has delved deep into the intricate relationship between these two entities, shining a spotlight on the role of genetic relatedness in shaping their dynamic dance.

With Solidago altissima (North American species of Goldenrod) as their muse, researchers embarked on an enthralling journey to unravel the secrets hidden beneath the earth's surface. Seedlings from a diverse array of parent plants were carefully nurtured, their destinies intertwined with the soil they grew in. Would kinship prove to be a blessing or a curse?

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The results of this groundbreaking experiment were nothing short of astonishing. Seedlings nestled in soil from their genetic relatives found themselves in a struggle for survival, their growth stunted by the very earth that bore their lineage. Meanwhile, those planted in soil from unrelated sources flourished, basking in the nurturing embrace of unfamiliar terrain.
In a revelation that echoes the complexities of human relationships, it became clear that genetic relatedness holds the key to unlocking the mysteries of plant-soil interactions. Much like a family reunion gone awry, sticking with familiar soil may not always be the best course of action. Sometimes, it's the unexpected encounters with strangers that lead to the most bountiful growth.

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As we gaze into the intricate web of life beneath our feet, this study serves as a beacon of insight, illuminating the nuanced dynamics that govern our ecosystems. From the depths of the soil to the heights of the canopy, the interplay between plants and their underground allies continues to captivate and inspire, reminding us of the boundless wonders that lie waiting to be discovered.

Source 👉 Clark, K. M., Gallagher, M. J., Canam, T., & Meiners, S. J. (2024). Genetic relatedness can alter the strength of plant–soil interactions. American Journal of Botany, e16289.

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Education

in Environment India

Striking a Balance in Human-Wildlife Conflicts of India

Confrontations between humans and wildlife, particularly involving common leopards (Panthera pardus) and Asian elephants (Elephas maximus) in the Himalayan region, pose formidable challenges for both local communities and conservation efforts. A recent study by Datta, P., et.al., (2024) has contributed to bridge critical gaps in existing research by delving beyond landscape-level predictors. It examined loss patterns resulting from leopard and elephant encounters, evaluates the effectiveness of coping strategies, and considers socio-economic factors associated with these conflicts within the Buxa Tiger Reserve (BTR). The study, based on face-to-face interviews with 345 households across 10 forest villages, reveals intriguing insights.

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he study revealed that leopards predominantly target cows during the day and goats during both day and night, while elephants raid crops, particularly during crucial agricultural phases like paddy transplantation and harvesting. Financial losses prompt the adoption of coping strategies, with traditional measures showing limited effectiveness. Visual deterrents like flashing bright LED torchlights for elephants and night lights for leopards prove more promising.
Larger households with substantial livestock are more vulnerable to leopard attacks, and rice cultivation areas and the eastern division of the BTR face heightened elephant-related crop damage.

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Location of the study villages in the Buxa Tiger Reserve

The interaction between humans and wildlife in India’s Buxa Tiger Reserve (BTR) offers valuable insights into the dynamics of coexistence and conflict. From leopard-induced livestock losses to elephant crop raiding, the patterns of these interactions reveal a complex interplay between predators and prey. The financial repercussions of these wildlife encounters have spurred communities to adopt various coping mechanisms. Traditional approaches have proven ineffective, prompting the implementation of innovative solutions. Moreover, socio-economic factors significantly influence the intensity of wildlife incursions.
In order to gain a deeper understanding of these complex interactions, it is essential to expand the scope of these type of research. These researches are crucial for developing effective conservation and conflict resolution strategies that address the varied challenges faced by communities living alongside wildlife.

Source 👉 Datta, P., Behera, B., Sonobe, T., & Chand, S. (2024). Human Coexistence with Leopards and Elephants: Losses and Coping Strategies in an Indian Tiger Reserve. Trees, Forests and People, 100518.

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Education

in Environment India

Unearthing Conflict: How Mining Shapes Human-Primate Encounters in Southern India

A recent study by researchers Anand, S., & Radhakrishna, S. (2024) delve into the impact of mining on human-primate conflict in southern India. Through a blend of household surveys and geospatial analysis, they explore how alterations to the landscape due to mining activities shape the dynamics of conflict between humans and primates in coal mining regions.

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In a coal mining region of southern India, researchers delve into the intricate interplay between human activities and wildlife dynamics. Through a meticulous blend of household surveys and geospatial analysis, they unravel the impacts of mining-induced landscape changes on human-primate conflict. Unlike traditional conflict scenarios, where crop damage often takes center stage, house-raiding emerges as the predominant form of conflict.
The study took place in Ramagundam Coal Belt region, situated in the Mancherial and Pedapalli districts of Telangana state, southern India, is part of the expansive Godavari Valley Coalfields (GVCF). Initially explored in 1886, the mining region has steadily expanded to encompass an area of 17,000 km2 across several districts. The Ramagundam area, in particular, has been a focal point of intensive mining activities since 1974.

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Location of study area and selection of survey locations

Results revealed that, unlike typical rural conflict scenarios, house-raiding emerged as the predominant conflict form, with minimal crop damage instances. Primates exhibited avoidance behaviors towards mining areas, with conflict incidents escalating further away from mines. Landscape features, particularly monospecific plantations correlated with reduced crop damage but increased likelihood of house-raiding incidents. Analysis of long-term land cover changes highlighted the correlation between the expansion of built-up areas and increased human-primate conflict interactions, particularly with rhesus macaques moving towards human settlements.
The research sheds light on the intricate connection between mining operations and human-primate conflict, highlighting how human-induced changes to landscapes significantly influence wildlife behavior and conflict patterns.

Source 👉 Anand, S., & Radhakrishna, S. (2024). Does Mining Escalate Human-Wildlife Conflict?: Insights from Human-Rhesus Macaque Conflict in a Coal-Mining Region in Southern India. Human Ecology, 1-13.

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Education

in Environment India

Today's Trending Environment News Alert

◆ Arun Krishnamurthy, the founder of Environmentalist Foundation of India (EFI), which works in the field of wildlife conservation and habitat restoration, and Saalumarada Thimmakka, the 112-year-old climate warrior from Karnataka’s Tumkur district known as the “Mother of Trees" for planting 8,000 trees, on Wednesday won the CNN-News18 Indian of The Year 2023 in the Climate Warriors category.

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CNN-News18 Indian of The Year 2023: Arun Krishnamurthy, S Thimmakka Win in Climate Warriors Category - News18

Arun Krishnamurthy was presented the CNN-News18 Indian of the Year 2023 award in the Climate Warriors category by Afroz Shah.

https://www.news18.com/india/cnn-news18-indian-of-the-year-2023-arun-krishnamurthy-s-thimmakka-win-in-climate-warriors-category-8734930.html

◆ The oldest tigress in the country, ST-2 (19), undergoing treatment at Sariska Tiger Reserve, died on Tuesday. Often termed the Rajamata of Sariska, it gave birth to ST-7, ST-8, ST-13, and ST-14.

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'Rajmata of Sariska', India's oldest tigress, dies of illness | Jaipur News - Times of India

The oldest tigress in Sariska Tiger Reserve, ST-2, died on Tuesday. ST-2, also known as the Rajamata of Sariska, was shifted to Sariska in 2008. She g

https://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/rajmata-of-sariska-indias-oldest-tigress-dies-of-illness/articleshow/106691919.cms

◆ The Tripura Forest Department, in collaboration with Aranyak, Guwahati, and Tripura University, commenced a three-day consultative workshop for wildlife managers on Wednesday to ensure the sustainable survival and thriving of hoolock gibbons in their natural habitats.

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Tripura forest department launches three-day workshop for conservation of Hoolock Gibbons

The Tripura Forest Department, in collaboration with Aranyak, Guwahati, and Tripura University, commenced a three-day consultative workshop for wildlife managers on Wednesday to ensure the sustainable survival and thriving of hoolock gibbons

https://www.indiatodayne.in/tripura/story/tripura-forest-department-launches-three-day-workshop-for-conservation-of-hoolock-gibbons-744929-2024-01-10?utm_source=topic&utm_medium=topic&utm_campaign=topic

◆ Assam Chief Minister Himanta Biswa Sarma on Wednesday said the government has cleared 8,000 hectares of forest land, encroached by suspected Bangladeshi people.

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8,000 Hectares Of Assam Forest Land Cleared From Suspected Bangladeshis: Himanta

The government also evicted 48,000 families from across the state for encroaching on the forest and public land, Sarma said while addressing the Assam BJP's Executive Meeting, attended by its national president J P Nadda.

https://www.outlookindia.com/national/8-000-hectares-of-assam-forest-land-cleared-from-suspected-bangladeshis-himanta-news-342295

◆ Five forest department personnel, engaged in the early morning patrol, escaped unhurt after suspected members of sand mafia allegedly hit their car with a sand-laden tractor trolley in a bid to avoid interception in the forest area in Tekulapally mandal of Bhadradri Kothagudem district in the early hours of January 9, 2024.

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Sand mafia adopts aggressive tactics to evade forest squad in Bhadradri Kothagudem district

Five forest department personnel escaped unhurt after suspected members of sand mafia allegedly hit their car with a sand-laden tractor trolley in a bid to avoid interception

https://www.thehindu.com/news/cities/Hyderabad/sand-mafia-adopts-aggressive-tactics-to-evade-forest-squad-in-bhadradri-kothagudem-district/article67726531.ece

◆ The National Tiger Conservation Authority (NTCA) has called for an inter-state coordination committee meeting between Telangana, Maharashtra, and Chhattisgarh, challenging the standard explanations provided by the Telangana forest department for the disappearance of tigers from forest corridor areas in KB Asifabad district, especially the Kagaznagar forest area.

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Education

in Environment India

Today's Trending Environment News Alert

◆ Numerous organizations intensified their protests Sunday at Hariharpur village in the state of Chhattisgarh in India, raising demands to cancel the Parsa coal mine as it threatens large-scale deforestation of the Hasdeo forests of Chhattisgarh, also known as the lungs of Chhattisgarh.
 

LATEST
NEWS

India witnesses intensified protests in Chhattisgarh over deforestation due to mining activities

Numerous organizations intensified their protests Sunday at Hariharpur village in the state of Chhattisgarh in India, raising demands to cancel the Parsa coal mine as it threatens large-scale deforest...

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India witnesses intensified protests in Chhattisgarh over deforestation due to mining activities

Numerous organizations intensified their protests Sunday at Hariharpur village in the state of Chhattisgarh in India, raising demands to cancel the Parsa coal mine as it threatens large-scale deforest...

https://www.jurist.org/news/2024/01/india-witnesses-intensified-protests-in-chhattisgarh-over-deforestation-due-to-mining-activities/

◆ In a concerning revelation in the Kerala Forest department's annual administrative report of 2021-22, over 5,000 hectares of forested land in the state has been encroached upon.
 

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India News | Over 5,000 Hectares of Forest Land in Kerala Under Encroachment: State Forest Dept Report | LatestLY

Get latest articles and stories on India at LatestLY. In a concerning revelation in the Kerala Forest department's annual administrative report of 2021-22, over 5,000 hectares of forested land in the state has been encroached upon. India News | Over 5,000 Hectares of Forest Land in Kerala Under Encroachment: State Forest Dept Report.

https://www.latestly.com/agency-news/india-news-over-5000-hectares-of-forest-land-in-kerala-under-encroachment-state-forest-dept-report-5677811.html

◆ According to the state’s Chief Wildlife Warden Samir Sinha, the tiger population density in Uttarakhand is among the highest in the world. The tiger population, which stood at 178 in 2006, rose to 560 in 2022, recording a rise of 314%.
 

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Good news! Tiger population in Uttarakhand sees a 314% jump: Here’s why it happened - Times of India

Trending News: Uttarakhand celebrates the impressive growth of its tiger population, which is among the highest in the world. Conservation efforts, community partici

https://m.timesofindia.com/etimes/trending/good-news-tiger-population-in-uttarakhand-sees-a-314-jump-heres-why-it-happened/articleshow/106645833.cms

◆ According to data compiled by the Wildlife Protection Society of India, a staggering 206 tigers and 565 leopards lost their lives during the year. Notably, Maharashtra recorded the highest tiger mortality with 52 deaths, closely followed by Madhya Pradesh with 45.
 

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Maharashtra lost the most big cats in 2023

Growing tiger and leopard population, coupled with shrinking habitats and human-animal conflict flagged as major concerns for worrying trends

https://www.mid-day.com/amp/mumbai/mumbai-news/article/maharashtra-lost-the-most-big-cats-in-2023-23328979

◆ Bird species in northeastern India have started shifting to higher elevations due to increasing temperatures owing to deforestation, a new study showed.
 

Bird species in northeastern India shifting to higher elevations, face threat of extinction

Researchers say certain bird species shifting to degraded forest systems for climate change adaptation may go extinct  

https://www.downtoearth.org.in/news/world/bird-species-in-northeastern-india-shifting-to-higher-elevations-face-threat-of-extinction-93765

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Education

in Environment India and in 2 more groups

Ripple in the Waters: Eurasian Otter Discovery in Western Ghats' Sanctuary

A thrilling discovery made by Mohan, S. K., and team in 2023 reveals something incredible! They spotted the elusive Eurasian Otter (Lutra lutra) right here in the Chinnar Wildlife Sanctuary within our beautiful Western Ghats. Two of these otters spotted in a rocky-torrential stream back in March 2020. These little fellas were on a frenzy, darting among submerged rocks, exploring nooks and crannies, and sometimes taking playful dives. What’s fascinating is their preference for spots where the water roars with energy, avoiding the calm and shallow areas.

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Now, here’s the real scoop on where they were found – it's a paradise up there! At 1,275 meters altitude in the Chinnar Wildlife Sanctuary, there’s lush greenery, these halfway-between forests (called transitional sholas), and patches of green along a speedy stream with big rocks and fallen trees. And get this – this place isn’t just for our Eurasian Otter friends; it's also a sweet spot for the Asian Small-clawed Otter (Aonyx cinereus). Looks like they're sharing the space wisely!

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Recorded site of Eurasian Otter Lutra lutra from Chinnar Wildlife Sanctuary

But here’s where it gets interesting: this discovery shakes up what we thought we knew about where these otters like to hang out in the Western Ghats. It's shouting out loud that we need to dive deeper into understanding these otters – their types, where they live, how many there are, and what they’re up to. Knowing all this stuff is like giving them a shield from the things that threaten them – losing their homes, sand mining, being hunted, and their numbers going down.
It’s clear as daylight that if we want to keep these otters safe and sound in our precious Western Ghats, we’ve got to take care of the greenery by the streams. It’s like giving them a big, leafy hug and saying, “We got you, little buddies!”

Source 👉 Mohan, S. K., Nath, L. R., Subin, K. S., Govindankutty, S. K., & Nameer, P. O. (2023). Recent record of Eurasian Otter Lutra lutra (Linnaeus, 1758)(Mammalia: Carnivora: Mustellidae) from Kerala part of the Western Ghats, India and an insight into the behaviour and habitat preferences. Journal of Threatened Taxa15(12), 24352-24356.

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Education

in Environment India and in 1 more group

Today's Environment News Alert

◆ The Union Ministry of Environment, Forest and Climate Change (MoEFCC) in India has raised eyebrows with its latest decision to consider ex-post facto clearances for non-forest projects in the Aravallis. This move effectively opens the door for regularization of constructions previously deemed illegal on this ecologically sensitive land.

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Union government may clear non-forest projects built in Aravallis

The approvals will be subject to payment of penal levies, and compensatory afforestation, the minutes of a committee meeting have revealed

https://www.hindustantimes.com/cities/delhi-news/centre-may-clear-non-forest-projects-built-in-aravallis-101703700480351.html

◆ District Level Forest Rights Committee has given forest clearances to six roads in Gummalakshmipuram and Kurupam mandals.

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Parvathipuram: Forest panel gives nod for 6 roads

These roads are being built in Gummalakshmipuram and Kurupam mandals to connect tribal areas to mainstream

https://www.thehansindia.com/news/cities/visakhapatnam/parvathipuram-forest-panel-gives-nod-for-6-roads-847268

◆ Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath proposed to start helicopter services and the establishment of four-lane road connectivity to facilitate seamless transportation to eco-tourism destinations such as Dudhwa National Park, Katarniaghat Wildlife Sanctuary, and Chuka of Pilibhit Tiger Reserve.

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Yogi Adityanath Proposes Chopper Services At Wildlife Sanctuaries In UP To Promote Eco Tourism

CM Yogi addressed several topics during the UP Wildlife Board meeting, outlining guidelines aimed at preserving the state's biodiversity and enhancing the potential for eco-tourism.

https://news.abplive.com/states/up-uk/yogi-adityanath-proposes-chopper-services-at-wildlife-sanctuaries-in-up-to-promote-eco-tourism-1652991

◆ Hailed as a legend with three world records to her name, Rajmata, an Asiatic lioness who died in 2020 in Amreli, has been given a befitting tribute by wildlife enthusiasts and residents of Krankach village in the district. A memorial in the form of a lifesize statue has been installed in the village with a plaque that reads, "World's most legendary lioness."

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India News | World's Most Legendary Lioness': A Befitting Tribute for Collarwali in Amreli | LatestLY

Get latest articles and stories on India at LatestLY. Hailed as a legend with three world records to her name, Rajmata, an Asiatic lioness who died in 2020 in Amreli, has been given a befitting tribute by wildlife enthusiasts and residents of Krankach village in the district. A memorial in the form of a lifesize statue has been installed in the village with a plaque that reads, "World's most legendary lioness." India News | World's Most Legendary Lioness': A Befitting Tribute for Collarwali in Amreli.

https://www.latestly.com/agency-news/india-news-worlds-most-legendary-lioness-a-befitting-tribute-for-collarwali-in-amreli-5655440.html

◆ The Nandankanan Zoological Park will receive two male chimpanzees and one male and one female cheetah from Dubai Safari Park, in exchange for a hippopotamus and six sangais. It will also receive African lion, red-necked wallaby, ring-tailed lemur and Hamadryas baboon in exchange of blackbuck, hog deer, gaur, red jungle fowl and gharial.

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Nandankanan to get chimpanzees | Bhubaneswar News - Times of India

Nandankanan Zoological Park to receive chimpanzees and cheetahs from Dubai Safari Park. Find out more about the exchange of animals.

https://timesofindia.indiatimes.com/city/bhubaneswar/nandankanan-to-get-chimpanzees/articleshow/106335987.cms

◆ Tarak Chandra Paul, an 52-years-old environmentalist from Kanchrapara, North 24 Parganas of Kolkata, West Bengal had arrived at Bongaigaon on Tuesday after 16 day-long bicycle trip from Kolkata.

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Assam: Environmentalist Tarak Chandra Paul reaches Bongaigaon - Sentinelassam

This is an inspirational journey of an environmentalist who is touring India on a bicycle to promote environmental conservation.

https://www.sentinelassam.com/north-east-india-news/assam-news/assam-environmentalist-tarak-chandra-paul-reaches-bongaigaon-683481

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