Manish Tiwari Dhaulakhandi

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खाद: प्रकृति का उपहार, हमारी जिम्मेदारी

खाद: प्रकृति का उपहार, हमारी जिम्मेदारी

खाद का अर्थ होता है, खाद्य पदार्थ (पौधों का भोजन), पौधों को पानी के साथ साथ भोजन की भी आवश्यकता होती है। पौधे अधिकतर भोजन प्रकाश संश्लेषण से प्राप्त करते हैं, लेकिन पोषकतत्व (माइक्रो न्यूट्रेंट) जड़ों के माध्यम से पानी के साथ जमीन से ग्रहण करते हैं। भूमि में जो जैविक कार्बन तत्व होता है वह भूमि में जीवन का आधार होता है। यह भूमि में रहने वाले सभी जीव, जीवाणुओं का भोजन होता है। इससे ही भूमि उपजाऊ बनती है और पौधे पनपते है।

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रासायनिक खादों की वजह से मिट्टी में यह जैविक कार्बन तत्व कम होता जा रहा है और भूमि बंजर होती जा रही है। रसायनिक खाद रूपी नशा देकर धरती माता का दोहन, बलात्कार किया जा रहा है। एक इंच मिट्टी की परत बनने में हजारों वर्ष लग जाते हैं। दिनों दिन मिट्टी कम होती जा रही है। कुछ मिट्टी को हमने बिल्डिंग, शेड, सड़कों, फुटपाथ के नीचे दबा दिया है, कुछ से हम खनिज लवण, बिल्डिंग मैटेरियल, रेत, कोयला, निकालकर खत्म कर रहे हैं, कुछ से ईंट, मिट्टी के बर्तन बनाकर उसे हमेशा हमेशा के लिए मार दिया हैं। कुछ को रसायनिक केमिकल डालकर, जहरीला करके मार रहे हैं। कुछ को मलबे, प्लास्टिक के नीचे दबाकर, दम घोंटकर मार रहे हैं। कुछ आग लगने से बंजर हो रही है।
भले ही हम धरती को माता कहें लेकिन हम इसकी देखभाल माता की तरह बिलकुल भी नही कर रहे हैं। दिल्ली जैसे शहरों में गमलों में पौधे लगाने के लिए ऑनलाइन से मिट्टी 55 रुपए प्रति किलो तक मिलती है। हम मिट्टी को पैदा नहीं कर सकते हैं, लेकिन खाद बनाना ही एक मात्र ऐसी विधि है जिससे हम उपजाऊ मिट्टी उत्पन्न कर सकते हैं। इसे पोंटिंग सॉइल कहते हैं जो विदेशों में बहुत महंगी मिलती है जिसे लोग गमलों में डालकर पौधे लगाते हैं। इसका (खाद का) एक फायदा और है कि हम जैविक कचरे का सदुपयोग करते है जिससे कचरें के ढेर नही बनते है और वातावरण, भूमि, भूजल को प्रदूषित करने से रोका जाता है, जमीन का दुरुपयोग लैंडफिल के रूप में होने से बचाव होता है और बाहर से खाद खरीदनी नहीं पड़ती है और रसायनिक खाद का उपयोग कम होता है।

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पत्तों को जलाना या कचरे के रूप में विद्यालय परिसर से बाहर भेजना एक पर्यावरणीय और नैतिक अपराध, पाप होता है, जिससे बचना चाहिए। पत्तों को जलाने से वायु का प्रदूषण बढ़ता है जिससे फेफड़ों की बीमारियां होती है। कचरा सड़क किनारे डालने से बदबू, मक्खी, मच्छर, कॉकरोच, चूहे, बीमारी पैदा करने वाले कीटाणु पैदा होते हैं। लैंडफिल में फेंकने से उपयोगी जमीन खराब होती है, बहुत धन खर्च होता है, हानिकारक गैसें उत्पन होती है।
अगर हम विधालय से ब्लैक गोल्ड रूपी इस धन को कचरे के रूप में बाहर भेजते हैं या जलाते हैं तो फिर हमारी पर्यावरण संरक्षण की बातें खोखली ही कही जायेंगी। पत्तों की खाद को मिट्टी या ग्रोइंग मीडिया की तरह प्रयोग में लाया जा सकता है। यह बहुत हल्की होती है इससे छत, बालकनी में लगे गमलों में भार कम होता है और इसकी वाटर रिटेनिंग कैपेसिटी (जल धारण क्षमता) अधिक होती है इससे पानी की आवश्यकता कम होती है। इसमें पनपे पौधों को अलग से खाद देने की खास आवश्यकता नही होती है और पौधों की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जिससे उनमें बीमारियां नही लगती है। इसमें मिट्टी वाले रोग नहीं लगते है।

खाद कई प्रकार की होती है जैसे कि पत्तो की खाद, केंचुआ खाद, रूड़ी की खाद, किचन वेस्ट से बनी खाद, रसायनिक खाद इत्यादि। सभी खाद बनाने का तरीका अलग अलग होता है। खाद बनना एक बायोलॉजिकल प्रक्रिया होती है, विज्ञान होती है इसलिए इसके सिद्धांतो को, विज्ञान को समझना बहुत जरूरी होता है। पत्तो की खाद को अंग्रेजी में लीफ मोल्ड भी कहते हैं क्योंकि यह मोल्ड यानि फंगस, फंफूदी बनाती हे। जबकि किचन वेस्ट खाद जीवाणुओं से बनती हे। और केंचुआ खाद केंचुओ से बनती है।

पत्तो की खाद (Leafmold)

पत्तों की खाद बनाने के लिए चार तत्वों की आवश्यकता होती है। १ जैविक कार्बन (पत्ते, फसल अवशेष), २. नमी, ३. ऑक्सीजन, ४. फंगस।
विद्यालयों में इसे जमीन में 3,4 फीट गहरा, 3,4 फीट चौड़ा और 5,6 फीट लंबा गढ़ा या नाली खोदकर बनाया जा सकता है। अगर विधालय में जमीन नहीं हो तो ईंटो, लकड़ी, जाली, कपड़े की 4 फीट ऊंची बाड़/दीवार बनाकर या ढेर बनाकर भी बनाया जा सकता है। रोजाना जो भी पेड़ों के पत्ते नीचे गिरे उन्हे गड्ढे या ढेर में डाल देना चाहिए। लेकिन इसमें नॉन जैविक पदार्थ जैसे कि प्लास्टिक, कांच, ईंट पत्थर, मलबा, तेल इत्यादि नहीं डालना चाहिए। जब लॉन की घास कटे तो उसे भी इस गढ़े या ढेर में बिछा देना चाहिए। पौधों की कटाई, छंगायी से प्राप्त पत्ते, छोटी टहनी, खरपतवार, मरे, सूखे हुए पौधे, जड़ें भी डाले जा सकते है, बचा हुआ खाना, फल, सब्जियां, ज्यूस, छाछ, आचार इत्यादि भी इसमें डाले जा सकते है। ऊपर से पत्तों से ढक देना चाहिए ताकि मक्खी मच्छर उत्त्पन ना हो। टहनियों को छोटे टुकड़ों में काटकर (श्रेड करके) डालने से जल्दी खाद बनती है।
सप्ताह में एक दो बार इसमें पानी छिड़ककर गीला कर देना चाहिए। गड्ढे या ढेर की लंबाई जगह अनुसार हो सकती है लेकिन चौड़ाई और गहराई/ऊंचाई कम से कम तीन फीट होनी चाहिए। जब एक गड्ढा भर जाए तो दूसरे में शुरू कर देना चाहिए। जब तक दूसरा गड्ढा भरेगा तब तक पहले गढ़े की खाद तैयार हो जायेगी। जब यह खाद पूरी तरह तैयार हो जाती है तो इसमें सोंधी मिट्टी की खुशबू आती है। और यह भूरे, काले, ग्रे रंग की हो जाती हे, साइज छोटा हो जाता है। इसे छानकर या बिना छाने भी प्रयोग में लाया जा सकता है।
इसे पूरी तरह बनने में 6 महीने लगते है लेकिन उपयोग में लाने के लिए 3 महीने में तैयार हो जाती हे। गांवों, खेतों में पत्तों के साथ साथ फसल अवशेष भी इसमें डाला जा सकता है।
घरों में जमीन नहीं होने पर पत्तों की खाद छेद हुए 200 लीटर वाले ड्रम या बोरों में भी बनाई जा सकती है।

किचन वेस्ट से खाद (compost)

घरों में किचन वेस्ट से भी अच्छी खाद बनाई जा सकती है। इसके लिए पांच तत्वों की आवश्यकता होती है।
१. कार्बन युक्त पदार्थ (सूखे पत्ते, फसल अवशेष, कोकोपीट, गत्ते, लकड़ी का बुरादा, इत्यादि),
२. नाइट्रोजन युक्त पदार्थ (हरे पत्ते, हरी घास, किचेन वेस्ट, फूड वेस्ट, चाय पत्ती, कॉफी पाउडर, गाय का गोबर,मूत्र इत्यादि),
३. नमी (55%)। गीला: सुखा कचरा 1:1 से लेकर 1:2 अनुपात में डालने से नमी की पूर्ति हो जाती हैं वरना पानी ऊपर से छिड़कना पड़ता है।
४. ऑक्सीजन - खाद बनाने वाले जीवाणुओं के लिए ऑक्सीजन/हवा की आवश्यकता होती है। जमीन में गड्ढे में खाद बनाने से मिट्टी के छिद्रों में उपस्थित हवा स्वत ही प्राप्त हो जाती है। ड्रम या बाल्टी में खाद बनाने के लिए छेद करने पड़ते है। ये छेद 3 एमएम डायामीटर के 6 इंच परस्पर दूरी पर किए जाते हैं।
५. जीवाणु : जीवाणु ही जैविक कचरे को खाद में परिवर्तित करते हैं। वैसे तो भोजन की तलाश में जीवाणु वातावरण से अपने आप ही आ जाते हैं लेकिन वातावरण में तो अनेकों तरह के अच्छे बुरे जीवाणु हो सकते हैं जैसे कि बीमारी या बदबू पैदा करने वाले भी। इसलिए अच्छे जीवाणुओं को कल्चर या जामन के रूप में मिलाने से खाद अच्छी और जल्दी बनती है। क्योंकि अच्छे जीवाणु अपनी कालोनी में बुरे कीटाणुओं को घुसने नहीं देते हैं।

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विधि १ :

  • अगर घर में जमीन उपलब्ध हो तो एक कोने/किनारे में 2 से 3 फीट गहरा और 2 फीट चौड़ा, 4,5 फीट लंबा गड्ढा/नाली खोदकर उसमें सबसे पहले कार्बन युक्त कचरे (सूखे पत्तों, फसल अवशेष इत्यादि) की 6 इंच मोटी परत नीचे बिछा दी जाती है।
  • उसके ऊपर 3 इंच मोटी परत नाइट्रोजन युक्त कचरे (गीले पत्ते, हरी घास, किचेन वेस्ट, गोबर इत्यादि की बिछा दी जाती है।
  • उसके ऊपर पहले की बनी हुई खाद छिड़क दी जाती है। पुरानी खाद नहीं हो तो किसी बड़े, पुराने पेड़ के नीचे की मिट्टी या वेस्ट डाइकंपोजर या गाय का गोबर या छाछ इत्यादि छिड़के जा सकते हैं।
  • उसके ऊपर कार्बन युक्त कचरे की परत डालकर, पानी छिड़क दिया जाता है। ऐसे परत दर परत गीला सुखा जैविक कचरा डाला जाता है जब तक गड्ढा भर नहीं जाता है।
  • ऊपर से पानी छिड़ककर मिट्टी की पतली परत से ढक दिया जाता है। उसके बाद दूसरे गड्ढे या नाली में परत दर परत गीला सुखा कचरा डाला जाता है। कचरा जितना छोटे साइज का होगा खाद उतनी ही जल्दी बनेगी।

विधि २ :

  • अगर घर में जमीन नहीं हो तो फर्श के उपर प्लास्टिक के 200 लीटर के साइड में छेद वाले ड्रम में भीं बनाई जा सकती है।
  • इसमें नीचे टूंटी लग जाए तो बहुत बढ़िया है जिसके माध्यम से तरल खाद/पानी को बाहर निकाला जा सकता है ताकि बदबू नहीं आए।
  • इस तरल खाद को 10 गुना पानी मिलाकर पौधों में डाला जाता है।
  • इस ड्रम में नीचे 1 फीट मोटा सुखा जैविक कचरा डाला जाता है।
  • उसके बाद गीले कचरे (2 इंच मोटा) और सूखे कचरे (4 इंच मोटा) को परत दर परत जमा किया जाता है। जब तक ड्रम भर नही जाए। ऊपर से ड्रम को ढकना चाहिए ताकि बारिश का पानी, मक्खी मच्छर इत्यादि इसमें ना घुसे।
  • एक ड्रम भरने के बाद दूसरे ड्रम में खाद बनाना शुरू किया जाता है। जब दूसरा ड्रम भरता है तब तक पहले वाले ड्रम की खाद तैयार हो जाती है।
  • सप्ताह में एक बार अगर ड्रम को पलटकर या हिलाकर गीला सुखा मिला दिया जाए तो खाद और जल्दी बनती है। खाद बनने में लगभग दो महीने का समय मिलता है, उसके बाद इसे प्रयोग में लाया जा सकता है।
  • यह खाद काफी तेज होती है इसलिए इसे मिट्टी, पत्तों या लीफमोल्ड में 20% से ज्यादा नही मिलाना चाहिए। इसे मिट्टी में मिलाकर छोटे पौधे लगाने से पहले एक महीने के लिए ठंडा किया जाए तो इसकी गर्मी निकल जाती है। पहले से लगे हुए पौधों में ऊपर की मिट्टी खुरचकर इस खाद की एक इंच मोटी परत डालकर, मिट्टी में मिलाकर ऊपर से पानी दे दिया जाता है। दो महीनो में एक बार खाद डालना पर्याप्त होता है।
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विधि ३:
घर में ड्रम नहीं होने पर इसे बड़े खाली गमले या बड़े मुंह वाले मिट्टी के घड़े या जूट बैग में भी बनाया जा सकता है।

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विधि ४:
अगर बड़े गमले में पहले से ही मिट्टी भरी हो तो उसकी आधी मिट्टी निकालकर उसमें किचन वेस्ट और मिट्टी के परत डालकर भी खाद बनाई जा सकती है।

विधि ५ :
पेड़ों, बड़े पौधों के चारों और कैनोपी के क्षैत्र में मिट्टी खोदकर, 1 फुट चौड़ी और 1 फीट गहरी नाली बनाकर, किचन वेस्ट को सीधा ही डालकर, मिट्टी से ढककर भी खाद बनाई जा सकती है, जो पौधे की जड़ों को मिलती रहेगी।

अच्छी खाद बनने की निशानी यही है कि उसमें सोंधी मिट्टी की खुशबू आनी शुरू हो जाती है। अगर खाद में बदबू आ रही हो तो इसका मतलब गीले कचरे की मात्रा ज्यादा है, हवा नही लग रही है या नीचे लिक्विड/ पानी इक्ट्ठा हो गया है। उसमें पानी निकालकर और सुखा कचरा मिलाकर फिर से बनाया जा सकता है।

नोट : किचन वेस्ट में सब्जियों, फलों के छिलके, सब्जियों के पत्ते, डंठल, चाय की पत्ती, काफी पाउडर, रोटी, चावल, सुखी सब्जी, आचार, सड़े हुए फल, सब्जियां, नाखून, बाल इत्यादि डाले जा सकते हैं। इसमें मिठाई, दूध, डेरी प्रोडक्ट, तेल, तरी, तरल पदार्थ, नॉन वेज आइटम इत्यादि नहीं डालने चाहिए।

गांवों खेतों में गाय- भैंस के गोबर और फसल अवशेष से खाद

गांवों में लोग गाय ,भैंस, बकरी, ऊंठ ,घोड़ा इत्यादि के गोबर से तो खाद बनाते हैं लेकिन पत्तों, फसल अवशेष, लकड़ी, खरपतवार, खराब हुए भूसे को जला देते हैं। गाय भैंस के गोबर से जो रुड़ी की खाद बनाते है उसमें भी सिर्फ गोबर ही डालते हैं जिसमें नाइट्रोजन की अधिकता होती है, और उसमें ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है इसलिए खाद बनने में लंबा समय लगता है, खाद कम बनती है और वह खाद पौधों को जला भी सकती है। अगर खाद बनने के सिद्धांतो (पांच तत्वों : कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, नमी, जीवाणु) के अनुसार खाद बनाई जाए तो खाद जल्दी, अच्छी क्वालिटी की और ज्यादा मात्रा में बनती है और इससे मिट्टी में भी सुधार होता है।

विधि :

  • जमीन में 4 फीट गहरा, 4 फीट चौड़ा और लम्बाई जगहानुसार लेकिन कम से कम 4 फीट लंबा गड्ढा खोदें।
  • अब उसमें नीचे कार्बन युक्त पदार्थ के रूप में सूखे पत्तों, फसल अवशेष , पेड़ों की पतली टहनियां, बिना कांटों वाली झाड़ियां इत्यादि की 6 इंच मोटी परत बिछाकर, ऊपर नाइट्रोजन युक्त पदार्थ के रूप में 2 इंच मोटी गोबर की परत बिछाकर पानी छिड़क देवें।
  • गोबर नहीं हो तो पानी की जगह गाय के मूत्र का छिड़काव किया जा सकता है, वेस्ट डिकंपोजर या जीवामृत को छिड़का जा सकता है, या फिर 3 इंच मोटी हरे पत्तों, घास, खरपतवार, हरे फसल अवशेष (कपास, नरमा , सरसों इत्यादि), बिना कांटो वाली झाड़ियों,पेड़ों की पतली हरी टहनियों इत्यादि को छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर (श्रेड करके) उनकी परत डाली जा सकती है; या फिर खराब, गिरे हुए, सड़े हुए फल- सब्जियां, फल-सब्जी अवशेष, फूड वेस्ट, इत्यादि भी डाले जा सकते हैं।
  • ऊपर से पानी का छिड़काव कर दिया जाए। ऐसा करते करते कार्बन युक्त जैविक कचरे और नाइट्रोजन युक्त जैविक कचरे को 2:1 के अनुपात में परत दर परत डालते जाएं जब तक गड्ढा भर नहीं जाए। जमीन से 1,2 फीट ऊपर तक यह ढेर बनाया जा सकता है।
  • अगर गड्ढा गहरा नहीं हो तो ढेर को जमीन से ऊपर भी बनाया जा सकता है जब तक कुल ऊंचाई 5,6 फीट तक ना पहुंच जाए। इससे अधिक ऊंचा ढेर नहीं लगाना है। अगर संभव हो तो 2 महीने बाद इस ढेर को काटकर सूखे गीले कचरे को मिलाया जाना चाहिए ताकि नीचे का कचरा ऊपर और ऊपर का नीचे चला जाए और हर जगह ऑक्सीजन पहुंच जाए। ऐसा जेसीबी, या अन्य मशीन से भी किया जा सकता है।
  • इस तरीके से 6 महीने में खाद बनाई जा सकती है।

कृपया आप खाद बनाना अवश्य शुरू करें। कोई भी दिक्कत या जानकारी , मार्गदर्शन के लिए मुझसे कभी भी संपर्क कर सकते हैं। मैं 25 से अधिक लोगों के लिए ऑनलाइन मीटिंग/वर्कशॉप भी करने के लिए तैयार हूं।

खाद बनाएं, जैविक कचरा निपटाएं
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आर के बिश्नोई,
कचरा प्रबंधन प्रमुख दिल्ली प्रांत, पर्यावरण संरक्षण गतिविधि
प्रांत पर्यावरण प्रमुख, विद्याभारती दिल्ली
9899303026
bishnoirk@gmail.com

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